मप्र / प्रदेश में पिछले साल बच्चियों से दुष्कर्म के 11 मामलों में फांसी की सजा सुनाई गई, अमल एक पर भी नहीं

मप्र / प्रदेश में पिछले साल बच्चियों से दुष्कर्म के 11 मामलों में फांसी की सजा सुनाई गई, अमल एक पर भी नहीं




 




मप्र में वर्ष 2019 में बलात्कार के 195 मामले सामने आए। इनमें बच्चियों से बलात्कार के 11 मामलों में फांसी की सजा और 122 मामलों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। हालांकि इनमें अमल एक पर भी नहीं हो पाया है। लोक अभियोजन विभाग की प्रमुख जनसंपर्क मौसमी तिवारी ने बताया कि बच्चियों से ज्यादती के मामलों में जल्द से जल्द सजा दिलाने के मामले में मप्र देश में नंबर है। कुछ मामलों में चार से पांच दिन में भी सजा दिलाई है। इंदौर में भी वर्ष 2018 और 19 में दो दुष्कर्मियों को मौत की सजा सुनाई गई है।


निर्भया कांड के बाद से देशभर में महिलाओं को आत्मरक्षा सिखाने का दौर शुरू हुआ। इंदौर जिले में भी पांच साल से नियमित रूप से संस्थाएं प्रशिक्षण शिविर लगा रही हैं, जहां लड़कियों की तादाद तीन से चार गुना बढ़ गई है। स्कूल शिक्षा विभाग ने तो इसे अनिवार्य कर दिया है। इसके लिए गाइन लाइन भी जारी की गई। संभागीय संयुक्त संचालक मनीष वर्मा कहते हैं कि सभी सरकारी स्कूलों में अनिवार्य रूप से आत्मरक्षा के गुर सिखाने के लिए शिविर लगाए जा रहे हैं। अब तक 15 हजार से ज्यादा लड़कियों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। पहले इन प्रशिक्षण शिविरों में लड़कियों की संख्या कम होती थी। वैसे तो वर्ष 2014 से आत्मरक्षा शिविर स्कूलों में आयोजित किए जा रहे हैं लेकिन अब इसे अनिवार्य किया जा रहा है। पहले जहां यह संख्या 500 से 550 होती थी, अब यह संख्या दो हजार तक हो गई है। 


दो लाख से ज्यादा लड़कियों और महिलाओं को प्रशिक्षण
ज्वाला संस्था की संस्थापक सदस्य डॉ. दिव्या गुप्ता कहती हैं कि हमने अब तक दो लाख से ज्यादा लड़कियों को प्रशिक्षण दिया है। हमारी टीम दस दिन तक महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह सीखने के बाद उनमें आत्मविश्वास बढ़ जाता है। हम वर्ष 2012 से इस तरह के प्रशिक्षण सत्र आयोजित कर रहे हंै लेकिन जागरूकता की बात करें तो अभी उतनी ज्यादा जाग्रति देखने को नहीं मिली है। 


बीते 35 साल से आत्मरक्षा संबंधी प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर रहे सईद आलम कहते हैं कि पहले जब मैं शिविर में प्रशिक्षण देता था तो लड़कियों की संख्या कम होती थी  लेकिन अब तीन गुना हो गई है। जब भी कोई हादसा होता है, उस समय शिविर में लड़कियों की संख्या बढ़ जाती है। कई बार तो 100 बच्चों की संख्या होने पर मना करना पड़ता है।  हमारे शिविर में 90 फीसदी लड़कियां होती है।



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